
कौन सुनता है
मन का रूदन
कौन सुनता हैं
रोम-रोम का क्रन्दन
कहाँ कोई देखता है
अस्रुओं का अनुरोध
अब कहाँ कोई पढ़ता है
अधरों का निवेदन
अपना-अपना है सबका
कहना-सुनना
अपना-अपना है सबका
घर -आँगन अपना जीवन
अब यहाँ,कहाँ ठहरता है कोई
अब खाली-खाली रहता है
ये मेरा घर-अँगना
टूट गया जब से
वो बचपन का बन्धन
सूना-सूना हो गया ये घर-आँगन
क्या यही है जीवन
क्या यही संसार का नियम
क्या इसे ही कहते हैं जीवन
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Akanksha
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2 responses to “सूना-सूना घर -आँगन”
so true Akanksha.😊🌹
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thanks…
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