भारत में कई धर्म हैं हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख,ईसाई और भी कई धर्म के लोग रहते हैं। इन धर्मों का भारतीय राजनीति में जड़ें गहरी और मजबूत हैं ।भारत का इतिहास भी देखें तो राजे -महाराजे, बादशाह, सुल्तान सब ने धर्म की राजनीति की है । उस समय से चली आ रही वो धर्म की राजनीति आज भी जिन्दा है भारतीय राजनीति में धर्म का खेमा हमेशा सक्रिय रहता है।भारत के वर्तमान समय की राजनीति में इसका ज़िक्र कर हर राजनीति पार्टी चुनाव के समय वोट बटोरने की कोशिश करती है। सभी धर्म की राजनीति करते रहते हैं जिसके कारण समाज में वाद-विवाद बना रहता है इस कारण लोगों में जातिगत भेदभाव भी बना हुआ है कभी कोई धर्म तो कभी कोई धर्म लोगों की बातों में हासिये पर रहता है। धर्म की राजनीति ने आरक्षण जैसे गम्भीर मुद्दों को हवा दी है जिसमें समाज की युवा पीढ़ी झुलसती रहती है। किसी भी देश में आरक्षण आर्थिक स्थिति पर दिया जाता है परन्तु हमारे देश में यह जातिगत हो चला है हालांकि आरक्षण कि शुरुआत गरीब तबके को आर्थिक तंगी से निकाल समाज की मुख्यधारा में सामिल करने के लिए ही की गई थी।वर्तमान समय में धर्म की राजनीति ने हमारे देश में गहरी पैठ बना ली है इससे निकलना तकरीबन हर राजनीतिक पार्टी के लिए असम्भव सा हो चला है। इस तरह की राजनीति से समाज में भेद-भाव विरोधाभास व नफ़रत का माहौल बन जाता है ये चुनावी समय में प्रत्यक्ष रूप से समाज में दिखने लगता है गावों -कस्बों में छोटे शहरों गली-मोहल्लों में भी इसकी गहमागहमी महसूस होती है। देखा जाए तो नये भारत की सबसे बड़ी चुनौतियों में से यह भी एक बड़ी गम्भीर चुनौती है । इस धर्म की राजनीति को जल्द से जल्द रोकने का प्रयास करना चाहिए अगर इस तरह की राजनीति कुछ दशक और समाज में बनी रही तो निश्चय ही भारत को इसके गम्भीर परिणाम देखने पड़ सकते हैं। धर्म की राजनीति करने वालों को चाहे वो किसी भी धर्म के हों हमें अर्थात समाज को उन्हें यह बताना होगा की समाजिक विकास ,स्वास्थ्य ,रोजगार महिलाओं व बच्चों की सुरक्षा व शिक्षा पर चुनावी रणनीति बना चुनाव लड़ें जातिगत मुद्दों को हवा दे अपनी राजनीतिक रोटियाँ न सेंकें।
