नया भारत इक्कीसवीं सदी का भारत , मेक इन इंडिया वाला भारत ,बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ ,आईटी सेक्टर में विकास करता भारत बहुत सारे नारों से हर रोज अख़बार भरे रहते हैं ट्विटर के पेज भरे रहते हैं परन्तु आज के भारत की सच्चाई क्या है। यहाँ क्या सच क्या फसाना है समझ नहीं आता मेक इन इंडिया का नारा देते देते सरकार ने GST की मार व्यापारियों पर लाद दिया क्या छोटे व्यापारी क्या बड़े सौदागर क्या मझले दर्जे के व्यापारी सब GST के.बोझ तले दब कर अब तक घाटे से उबरने की कोशिश में लगे हैं GST का फायदा सरकार बस कागज़ों पर ही गिनाती रहती है व्यापारियों का उस लाभ में कोई हिस्सेदारी नहीं हैं।
बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ के तहत भी स्थिति दयनीय ही है प्राथमिक शिक्षा को छोड़ दिया जाए तो अगर एक बेटी जो वयस्क है वह अगर उच्च शिक्षा प्राप्त करने की इच्छुक है तो वह कैसे प्राप्त करेगी इस सम्बंध में कोई सरल प्रक्रिया से उनकी मदद करने का कोई उपाय या सुझाव तक सरकार के पास नहीं हैं । बेटी बचाओ अभियान में सुधार आकड़ों में बढ़ -घट ही नजर आता है ज़मीनी हकीकत अब भी बद्तर ही है । कोरोना महामारी ने स्वास्थ्य व्यवस्था की र्जज़र हाल को उजागर कर ही दिया इस पर जितनी भी चर्चाएं हो सब कम ही लगती हैं ।
आईटी सेक्टर में विकास की बात करे तो अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत अमेरिका , रूस, चीन, जापान, कोरिया व इज़रायल से बहुत पीछे है ।अगर अपने देश भारत की अन्दरूनी बात करें तो आईटी सेक्टर में पढ़ाई कर बहुत सारे युवा बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं देश में ही उनके लिए रोज़गार उपल्बध नहीं है । भले ही ट्वीटर ,गूगल के सीइओ भारत के पढ़े युवा ही क्यों न हों स्मार्ट भारत का नारा केवल स्मार्टफोन में ही सिमट कर रह गया है ।
इक्कीसवीं के भारत का सच कुछ और ही सामने आ रहा है जिसमें गरीब तबके को हर महिने के हिसाब से एक किलो सरकारी नमक व तेल बांट सन्तुष्ट करने की कोशिश की जा रही है । इसके ज़रिए नये भारत के विकास का खाका खिंचने की भी कोशिश की जा रहा है ।जो किसी भी बुद्धिजीवि के समझ से परे है । नये भारत की इन उलझनों पर ध्यान केन्द्रित करना होगा आडम्बर व ख़याली कागज़ी आकड़ों से निकल ज़मीनी आकड़ों पर कार्य कर सचमुच का सुन्दर , सुदृढ़ शिक्षित स्वास्थ्य भारत बनाना होगा।
