बात बजट की करते हैं जनाब देश के बजट की नहीं घर के बजट की जो अब हिल चुका है। क्या कम कमाने वाले क्या ज़्यादा कमाने वाले सब का बुरा हाल है घर का राशन खरीदने में पसीने छूट रहे हैं। पेट्रोल व अन्य संसाधनों के बढ़े दाम छोड़िए यहाँ तो खाना बनाने में कुछ मुख्य चीजों की महंगाई जैसे सरसो का तेल ,दाल आटा ,सब्जियां सब की कीमत आसमान छू रहीं हैं दो वक्त का खाना जुटाने में लोग बेहाल हुए जा रहे हैं। परन्तु सरकारी आंकड़ों में महंगाई और गरीबी कम हो रही है कहाँ के आकड़े हैं कहाँ से आते हैं जनता शायद कभी नहीं जान पायेगी क्यों की जनता तो दाल आटे के भाव में ही उलझकर पिसती रहेगी फुर्सत ही नहीं लेने देगी ये महंगाई की वह बेचारी जनता सरकार से अपनी बेहाली का सवाल पूछ सके सरकार को कटघरे में खड़ा कर सके। महंगाई का अस्त्र-सस्त्र जनता की गले पर जो रख दिया है।
